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________________ करने वाला) हो जाता है। सम्यक् 'प्रायश्चित्त' अंगीकार करने वाला (जीव) 'मार्ग' (सम्यग्दर्शन) तथा 'मार्ग-फल' (ज्ञान, दोनों) को विशुद्ध/निर्मल कर लेता है। (फलस्वरूप, वह) आचार व आचार-फल (मुक्ति) का आराधक हो जाता (सू.१८) (प्रश्न-) भन्ते! क्षामणा/क्षमापना (दुष्कृत्य या अपराध के लिए गुरु-जनों से क्षमा मांगना, और अन्य के अपराध आदि के लिए क्षमा प्रदान) करने से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) क्षामणा/क्षमापना करने से (जीव) प्रह्लाद (मानसिक प्रसन्नता) को प्राप्त करता है। मानसिक प्रसन्नता प्राप्त करने वाला सभी (द्वीन्द्रियादि) प्राणियों, (वनस्पति आदि) भूतों, (पंचेन्द्रिय) जीवों व (पृथ्वी आदि स्थावर) सत्वों के साथ मैत्रीभाव का निर्माण करता है। मैत्रीभाव को प्राप्त करने वाला जीव भावों की विशुद्धि कर निर्भय हो जाता है। (सू.१६) (प्रश्न-) भन्ते! 'स्वाध्याय' (काल-मर्यादा पूर्वक शास्त्र का अध्ययन) या 'स्व' निज आत्मा का स्व (निज स्वरूप में अध्ययन/रमण) करने से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) 'स्वाध्याय' से (जीव अपने) ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय करता है। (सू.२०) (प्रश्न-) भन्ते! 'वाचना' (स्वयं या गुरुमुख से सत्शास्त्र' के अध्ययन, तथा शिष्यादि को शास्त्र के अध्यापन) से जीव क्या (गुण या विशिष्ट फल) उपलब्ध करता है? (उत्तर-) 'वाचना' से (जीव अपने कर्मों की) निर्जरा करता है तथा 'श्रुत' (के पठन-पाठन करते रहने से उस) की आशातना (अवज्ञा के दोष) से मुक्त रहता है। 'श्रुत' की 'अनाशातना' में रहता हुआ (वह) तीर्थ-धर्म का अवलम्बन करने वाला (स्व-अध्ययन, श्रमण-धर्म व शास्त्र-परम्परा को अविच्छिन्न रखने वाला) होता अध्ययन-२६ ५६६
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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