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अध्ययन-सार :
सर्वज्ञ जिनेन्द्रों ने सत्य बतलाया है कि सम्यक् ज्ञान, दर्शन, चारित्र व तप मोक्ष-प्राप्ति का मार्ग है। मति, श्रुत, अवधि, मनः पर्यव तथा केवल, पांच प्रकार के ज्ञान से सभी कुछ जाना जाता है। छह द्रव्यों से युक्त लोक, जीव, पुद्गल, पर्याय, नौ तत्व; इन सभी को जानना सम्यक् ज्ञान है। जिनभाषित इस ज्ञान पर अटूट आस्था सम्यक् दर्शन है। निसर्ग, उपदेश, आज्ञा, सूत्र, बीज, अभिगम, विस्तार, क्रिया, संक्षेप तथा धर्मरुचि, इन रूपों में सम्यक्त्व के दस प्रकार हैं। परम अर्थ को जानना, उसे जानने वालों का गुणगान व उनकी सेवा करना तथा मिथ्यात्वियों से दूर रहना सम्यक्त्वी के लक्षण हैं।
सम्यक्त्व से ज्ञान, ज्ञान से चारित्र और चारित्र से मोक्ष होता है। सन्देह-मुक्ति, आकांक्षा-मुक्ति, निर्विचिकित्सा, अमूढ़-दृष्टि, उपबृंहण, स्थिरीकरण, वात्सल्य और प्रभावना, सम्यक्त्व के अंग हैं। सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहार-विशुद्धि, सूक्ष्म-सम्पराय और यथाख्यात्, ये पांच प्रकार के सम्यक् चारित्र हैं। छह प्रकार का बाह्य और छह प्रकार का आभ्यन्तर तप होता है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र व तप से जीव सम्पूर्ण कर्म-क्षय कर मुक्ति प्राप्त करता है।
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उत्तराध्ययन सूत्र