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________________ 茶业兴国米乐 (a) अध्ययन परिचय छत्तीस गाथाओं से यह अध्ययन निर्मित हुआ है। इस का केन्द्रीय विषय है-मोक्ष तक पहुँचाने वाले साधनों को साधना। मोक्ष की राह पर साधक की गति जिस प्रक्रिया से सम्भव एवम् तीव्र होती है, उस का सांगोपांग परिचय इसमें दिया गया है। इसीलिये इसका नाम 'मोक्ष-मार्ग-गति' रखा गया। जैन दर्शन के अनुसार प्रत्येक आत्मा का परम लक्ष्य केवल मोक्ष है। भले ही वह उसे पहचाने या न पहचाने। अपना परम लक्ष्य पहचान लेने वाली भव्य आत्मायें उसे प्राप्त करती हैं- सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तप के माध्यम से। ध्यातव्य है कि 'सम्यक्' शब्द मोक्ष के सभी साधनों से जुड़ा है। स्पष्ट है कि सम्यक्त्व इन सभी का आधार है। इसके अभाव में उक्त चारों साधन मिल कर भी साधना नहीं बन सकते। साध्य तक साधक को नहीं पहुंचा सकते। सम्यक्त्व का अर्थ है-जिन-धर्म को निज धर्म मानना। जिन-वाणी द्वारा उजागर किये गये सत्य पर अटूट आस्था रखना। यह स्वीकार करना कि सत्य ज्ञानेन्द्रियों, मन व मस्तिष्क की सीमाओं से परे भी है, वस्तुतः ज्ञान को असीम सम्भावना मानना है। असीम ज्ञान के लिए जीवन के द्वार खोलना है। ये द्वार जब खुलते हैं तो जीवन में सम्यक्त्व का प्रवेश प्रारम्भ होता है। सर्वज्ञों ने त्रिकाल-त्रिलोक-व्यापी जिस सत्य को साक्षात् देखा है, वही सृष्टि-कल्याण के प्रयोजन से कहा है। वही सत्य है। उसका साक्षात्कार सर्वज्ञता तक पहुंचने वाली अनेक आत्माओं ने किया है। उस पर शंका करना आत्मा के विकास को रोकना है। उस पर आस्था रखना आत्मा को कषायों व कर्मों से प्रदूषित होने से बचाना है। अपने मूल स्वरूप तक.......निर्मल स्वरूप तक पहुंचने में उसकी सहायता करना है। उसे मोक्ष-मार्ग पर अग्रसर करना है। इस मान्यता पर अखण्ड श्रद्धा 'सम्यक् दर्शन' है। सम्यक् दर्शन आत्मा के विकास या उत्थान का सब से पहला सोपान है। यह अन्तर्नेत्रों का खुलना है। अन्तर्नेत्र जब खुल जाते हैं तो साधक द्वारा सम्यक् ज्ञान की दिशा में अग्रसर होने की सम्भावना परिपक्व हो जाती है। इस सम्भावना का अथवा मति, श्रुत, अवधि, मनः पर्यव एवं केवल ज्ञान का साकार होना साधक के पौरुष एवं साधना की निरन्तरता व दृढ़ता पर निर्भर है। जिनेन्द्र-प्ररूपित साधना की निरन्तरता व दृढ़ता ही सम्यक् चारित्र है। बाह्य लिन्छ ५३२ उत्तराध्ययन सूत्र G
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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