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________________ अध्ययन परिचय प्रस्तुत अध्ययन में कुल सत्रह गाथायें हैं। इस का केन्द्रीय विषय है-अविनीत शिष्यता। खलुक शब्द का अर्थ है : दुष्ट बैल। दुष्ट बैल के माध्यम से यह विषय साकार हुआ है। इसीलिए इसका नाम 'खलुंकीय' रखा गया। जैसे सम्बन्ध दुष्ट बैल और किसान के बीच होते हैं, वैसे ही अविनीत शिष्य और गुरु के बीच भी होते हैं। दोनों ही सम्बन्ध सु-फलों से शून्य रहते हैं। दोनों दु:खों से होते हुए दु:खों तक पहुंचते हैं। दुष्ट बैल स्वामी द्वारा बताये मार्ग पर नहीं चलता। अविनीत शिष्य भी गुरु-आज्ञा का पालन नहीं करता। दुष्ट बैल किसान को सताता है। अविनीत शिष्य गुरु को कष्ट देता है। दुष्ट बैल अपनी इच्छा से चलता है। अविनीत शिष्य मनमाना आचरण करता है। दुष्ट बैल अपने स्वामी का स्नेह नहीं पाता। अविनीत शिष्य गुरु-कोप को आमंत्रित करने के लिये तत्पर रहता है। दुष्ट बैल स्वामी के संकेतों से भड़क उठता है। अविनीत शिष्य गुरु के संकेतों से झल्लाने लगता है। दुष्ट बैल स्वामी को आंखें दिखाता है। अविनीत शिष्य गुरु का अपमान करने में गर्व का अनुभव करता है। दुष्ट बैल स्वामी को अयोग्य सिद्ध करने में लगा रहता है। अविनीत शिष्य गुरु के वचनों में दोष देख-देख कर अपने व्यक्तित्व में उन्हीं का संग्रह करता रहता है। दुष्ट बैल स्वामी के कार्य में तरह-तरह से बाधायें उपस्थित कर प्रसन्न होता है। अविनीत शिष्य गुरु की एक भी बात साकार न होने देने में अपनी शक्ति की सफलता देखता है। दुष्ट बैल क्रोधाविष्ट हो जुए और गाड़ी को तोड़ देता है। अविनीत शिष्य गुरु के प्रभाव और धर्म के रथ को खण्डित कर देता है। दुष्ट बैल और अविनीत शिष्य, दोनों अपनी हठधर्मिता, अपने अहंकार, अपनी दुष्टता, अपने अज्ञान और अपने पापों में वृद्धि करते रहते हैं। दोनों दुःख देते रहते हैं। दोनों दुःख पाते रहते हैं। प्रस्तुत अध्ययन इस दु:ख-प्रक्रिया के मूल आधार को स्पष्ट करता है। इसका मूल आधार है-अविनय। विनय गुणों के संग्रह का मार्ग है तो अविनय दोषों के संग्रह की राह। इस राह से स्वयं बचने तथा दूसरों को बचाने के लिए इसे जानना आवश्यक है। जैन धर्म में ज्ञान का अत्यन्त महत्त्व है। गुरु-शिष्यसम्बन्ध ज्ञान के स्रोत हैं। अविनीत शिष्य द्वारा गुरु का तिरस्कार वस्तुतः ज्ञान-स्रोत का तिरस्कार है। आत्म-कल्याण का तिरस्कार है। धर्म का तिरस्कार है। ५२० उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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