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________________ ४४. (रात्रि की) प्रथम पौरुषी (प्रहर) में स्वाध्याय (करे), तथा द्वितीय में ध्यान करे । तृतीय में निद्रा से मुक्ति का कार्य (अर्थात् शयन) करे । चतुर्थ प्रहर में (पुनः) स्वाध्याय करे । ४५. चतुर्थ पौरुषी (प्रहर) में 'काल' की प्रतिलेखना कर (अर्थात् स्वाध्यायादि-सम्बन्धी वर्ण्य बातों का ध्यान रखते हुए, चतुर्थ प्रहर के प्रारम्भिक छः घड़ी तक ही स्वाध्याय कर्तव्य है, उसके बाद नहीं-इसका ध्यान रखते हुए) असंयमी व्यक्तियों को न जगाते हुए (अर्थात् उनकी निद्रा न टूटे-इस रीति से) स्वाध्याय करे। ४६. (इसी) चतुर्थ पौरुषी के (तीन चौथाई भाग बीतने पर तथा चतुर्थ प्रहर के दो घड़ी प्रमाण काल शेष रहने पर) चतुर्थ भाग में गुरु की वन्दना कर, काल का प्रतिक्रमण कर (अर्थात् स्वाध्याय से विरत होता हुआ, प्रभात-) काल की प्रतिलेखना करे (अर्थात् स्वाध्याय-वर्ण्य बातों का सम्यक् निरीक्षण करे)। ४७. इसके पश्चात् सभी दुःखों से मुक्त करने वाले कायोत्सर्ग (का समय) आने पर सर्व दुःखों से मुक्त कराने वाला 'कायोत्सर्ग' करे। ४८. (कायोत्सर्ग में) ज्ञान, दर्शन, चारित्र व तप में लगे रात्रि-सम्बन्धी अतिचारों का अनुक्रम से चिन्तन करे । ४६. कायोत्सर्ग को सम्पन्न कर गुरुवन्दना करे, और फिर अनुक्रम से रात्रि-सम्बन्धी अतिचारों की (गुरु के समक्ष) आलोचना करे । अध्ययन-२६ ५१५
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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