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________________ ३८. (दिन की इस चतुर्थ) पौरुषी के (प्रारम्भ के ३/४ भाग में अर्थात् छः घड़ियों तक, स्वाध्याय कर, इसी प्रहर के अन्तिम) चतुर्थ भाग (२ घड़ियों) में (स्वाध्याय समाप्त कर) गुरु को वन्दना करे, तदनन्तर काल-प्रतिक्रमण (स्वाध्याय विरति व कायोत्सर्ग) कर (अपने शयन-स्थान) 'शय्या' की प्रतिलेखना करे । ३६. उसके बाद, यतनाशील ‘यति' (मुनि) प्रस्रवण (मूत्र-त्याग) व उच्चार (मल-त्याग) की भूमि का प्रतिलेखन करे, तदनन्तर समस्त दुःखों से छुड़ाने वाला 'कायोत्सर्ग' करे । ४०. (कायोत्सर्ग में) ज्ञान, दर्शन व चारित्र में लगे दिवस-सम्बन्धी अतिचारों का अनुक्रम से चिन्तन करे । ४१. कायोत्सर्ग को सम्पन्न कर, गुरु की वन्दना करे (पश्चात्) यथाक्रम से दिवस-सम्बन्धी अतिचारों की (गुरु के समीप) आलोचना करे। ४२. प्रतिक्रमण कर, (माया आदि) शल्य से रहित होकर, गुरु की वन्दना करे। फिर सब दुःखों से मुक्त कराने वाला 'कायोत्सर्ग' करे। HOME ४३. कायोत्सर्ग को सम्पन्न कर, गुरु की वन्दना करे (पश्चात्) _ 'चतुर्विंशति स्तव' व 'नमोत्थूणं' आदि स्तुति-मंगल करके, काल की (प्रदोष-कालोचित) प्रतिलेखना करे । अध्ययन-२६ ५१३
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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