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________________ ६. (भिक्षा द्वारा प्राप्त) द्रव्य-सामग्री (भोजन-वस्त्रादि) (गुरु तथा । सहधर्मी मुनियों को आमंत्रित करने में अनुरोध स्वरूप) 'छन्दना' (सामाचारी) होती है, सारण (अपनी इच्छा से दूसरों के कार्य करने से पूर्व तथा दूसरों से अपना कार्य करवाने से पूर्व, उनसे विनम्र निवेदन करने) में 'इच्छाकार' (सामाचारी) होती है । (कृत दोषों की निवृत्ति हेतु, गुरुजनों के समक्ष आत्म-) निंदा करने में 'मिथ्याकार' (सामाचारी) होती है, और 'प्रतिश्रवण' (गुरुजनों के उपदेश आज्ञा आदि को सुनकर, स्वीकृति सूचना) में 'तथाकार' (सामाचारी) होती है। गुरुपूजा (व सत्कार आदि की क्रिया) में 'अभ्युत्थान' (आसन आदि से उठना क्रिया-स्वरूप) सामाचारी होती है ।, (विशिष्ट प्रयोजन-वश (अध्ययनादि) दूसरे गण के आचार्य के पास) 'आसन' (रहने) में 'उपसम्पदा' (मर्यादित काल तक शिष्यत्व स्वीकार करने की सामाचारी) होती है। इस प्रकार दश (अंगों से युक्त) 'सामाचारी' कही गई है। सूर्य के उदय होने पर (दिन के चार भागों में से) प्रथम भाग (प्रहर) के प्रथम चतुर्थांश (दो घड़ी ४८ मिनटों में) भाण्डों (पात्र आदि उपकरणों) की प्रतिलेखना करे, तदनन्तर गुरु की वन्दना करे, फिर, (शिष्य/मुनि) करबद्ध होकर पूछे- “अब मुझे क्या करना चाहिए? भगवन्! मैं (आपकी आज्ञा से) वैयावृत्य (सेवा) में या फिर स्वाध्याय में नियुक्त होना चाहता हूँ।" C १०. (गुरु द्वारा) वैयावृत्य में नियुक्त किए जाने पर बिना ग्लानि के (शरीर-श्रम की चिन्ता न करते हुए हर्षपूर्वक वैयावृत्य) करनी चाहिए। या फिर स्वाध्याय में नियुक्त किए जाने पर (बिना ग्लानि के, बिना थके व उत्साहपूर्वक) सभी दुःखों से विमुक्त करने वाली स्वाध्याय करनी चाहिए। अध्ययन-२६ ४EE
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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