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________________ अध्ययन-सार : ईर्या, भाषा, एषणा, आदान-निक्षेप व उच्चार-प्रस्रवण नामक पांच समितियां तथा मन, वचन व काया की तीन गुप्तियाँ, ये आठ प्रवचन-मातायें जिन-वाणी-सार हैं। आलम्बन, काल, मार्ग व यतना इन चार कारणों तथा द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से साधक ईर्या समिति का पालन करे। क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, भय, वाचालता तथा विकथाओं का त्याग कर भाषा समिति का पालन करे। आहार, उपधि व शैया की गवेषणा, ग्रहणैषणा व परिभोगैषणा के सभी दोषों का परिहार कर 'एषणा समिति' का पालन करे। सामान्य व विशेष, सभी उपकरणों को उठाने-रखने में प्रतिलेखना व विवेक से काम लेते हुए आदान-निक्षेपण समिति का पालन करे। शरीर के विसर्जन योग्य पदार्थों को अनापात-असंलोक, अचित्त, सम स्थण्डिल भूमि में विसर्जित करते हुए 'उच्चार प्रस्रवण समिति' का पालन करे। आरम्भ-समारम्भ की ओर प्रवृत्त मन का निरोध कर मनोगुप्ति का पालन करे। पाप-पूर्ण वचनों का परित्याग कर वचन-गुप्ति का पालन करे, और शरीर के सभी छोटे-बड़े कार्यों में पाप-रहित होते हुए काय-गुप्ति का पालन करे। उक्त आठ प्रवचन-माताओं के अनुरूप जो विवेकशील साधक आचरण करता है, वह भवसागर से शीघ्र ही पार हो जाता है। 00 ४७२ उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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