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३१. केशीकुमार के इस प्रकार कहने पर गौतम स्वामी ने यह कहा
“विशिष्ट ज्ञान ('केवल') से जान-समझ कर (ही) धर्म के साधनों (साधु-वेशों) को अभीष्ट (प्रतिपादित) किया गया है।"
३२."नाना प्रकार (के उपकरणों) की परिकल्पना (तो वास्तव
में लोगों की) प्रतीति के उद्देश्य से की गई है। साथ ही (इस) 'लिंग' (बाह्य साधु-वेश) का लोक में प्रयोजन (तो 'संयम' की) यात्रा (के निर्वाह) हेतु, तथा (स्वयं को 'साधु' होने का बोध) ग्रहण करने हेतु (या अपनी पहचान
कराने हेतु) हुआ करता है।" ३३. “निश्चय दृष्टि से तो (दोनों वेशवालों के लिए मान्य तथा
तीर्थंकरों की एक) प्रतिज्ञा (स्वीकृत सिद्धान्त) है ही कि (सम्यक्) दर्शन, ज्ञान व चारित्र (ये रत्नत्रय) मोक्ष के वास्तविक साधन
(भूत मार्ग) हैं।" ३४. (केशीकुमार मुनि ने कहा-) “हे गौतम! आपकी प्रज्ञा श्रेष्ठ है।
आपने मेरा यह संशय दूर कर दिया है। मुझे (एक) और संशय है। हे गौतम! उसके सम्बन्ध में (भी) आप बताएं ।”
३५.“हे गौतम! आप अनेक सहस्र (शत्रुओं) के (बीच) मध्य रहते हैं,
और वे (आपको जीतने के लिए) आपकी ओर आ रहे हैं। आपने उन्हें किस प्रकार विजय किया है ?"
३६. (गौतम स्वामी बोले-) “(भगवन्!) एक (शत्रु) को जीत लेने पर
पांच (शत्रु) जीत लिए जाते हैं, पांचों को जीत लेने पर, दश (शत्रु) जीत लिए जाते हैं, और दस (शत्रुओं) को जीत कर में सभी शत्रुओं को जीत चुका हूँ।"
अध्ययन-२३
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