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५४. (कोई) धीर (साधक एकान्त दृष्टि वाले) कुहेतुओं से स्वयं को
किस प्रकार भावित कर सकता है? (अर्थात् कदापि नहीं) (अतः जो) सभी ‘संगों' (धन-धान्य आदि परिग्रह एवं मिथ्यात्वपूर्ण वादों) से मुक्त होता है, वह) कर्म-रज से रहित होते हुए ‘सिद्ध' (मुक्त) हो जाता है। -ऐसा मैं कहता हूँ ।”
अध्ययन-१८
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