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________________ अध्ययन-सार : व्यक्ति की बहुश्रुतता या अबहुश्रुतता को, उसके व्यवहार में भी स्पष्ट देखा जा सकता है। अबहुश्रुत व्यक्ति सामान्यतः अभिमानी, रूप-रसादि में आसक्त, जितेन्द्रियता से रहित, सदैव असम्बद्धभाषी एवं अविनीत होता है। उसका अविनीत भाव व्यवहार में विविध रूपों में प्रकट भी होता है। इसके विपरीत 'बहुश्रुत' में समुद्रवत् ज्ञान की गम्भीरता होती है, वह परीषहों व मनोविकारों आदि से अविचलित, किसी भी परवादी से अपराजेय, निर्भय एवं षट्कायजीव-रक्षक होता है। 'विनय' के बल पर व्यक्ति सहजतया बहुश्रुतता प्राप्त कर लेता है। 'विनीत' वह है जो नम्र, चपलता-रहित, निश्छल, कौतूहल-प्रियता से रहित, किसी का तिरस्कार न करने वाला, क्रोध को दीर्घकाल तक टिकाये न रखने वाला, मैत्रीभाव रखने वाला होता है। बहुश्रुत दूध से भरे शंख की तरह निर्मल धर्म, कीर्ति व श्रुत-ज्ञान से युक्त होता है, कम्बोज देश के विशुद्धजातीय घोड़ों की तरह श्रुत-शीलस्वरूप शक्ति से युक्त, दृढ़ पराक्रमी योद्धा की भांति विजय-वाद्यों से सुशोभित, साठ वर्ष के बलिष्ठ हाथी की तरह अपने बुद्धि/विद्या-सम्बन्धी बल के कारण दुर्जेय, तीक्ष्ण-श्रृंग व बलिष्ठ स्कन्धों वाले यूथाधिपति वृषभ की तरह स्वपर शास्त्र-विषयक तीक्ष्ण बुद्धि व गुरुतर उत्तरदायित्व-वहन की क्षमता से युक्त, नय-विज्ञता-प्रतिभादि गुणों के कारण वनराज सिंह की भांति दुर्जेय, विशिष्ट आयुध-धारक वासुदेव की भांति रत्नत्रयधारी व कर्म-शत्रु-विजेता, चतुर्दश रत्नों के अधिपति चक्रवर्ती की तरह चतुर्दश पूर्वो का ज्ञाता, विविध ऋद्धिलब्धिसम्पन्न व यशस्वी, देवेन्द्र शक्र की तरह देव-पूज्य एवं दिव्य ज्ञान-सम्पदा से युक्त, उदीयमान सूर्य की तरह तपस्तेज से प्रज्वलित, पूर्णिमा के चन्द्रमा की तरह सकलकला-सम्पन्न, धान से भरे कोष्ठागार की तरह ज्ञान का भण्डार, सुदर्शन जम्बू वृक्ष की तरह श्रेष्ठता-सम्पन्न, सीता नदी की तरह निर्मल श्रुतज्ञान-धारा से परिपूर्ण, विविध औषधि-युक्त मन्दराचल की तरह विविध लब्धियों से सम्पन्न तथा स्वयंभू रमण रत्नाकर की तरह अगाध ज्ञान-जल व ज्ञानादि-रत्नों से युक्त होता है। चूंकि बहुश्रुतता व्यक्ति को 'मुक्ति दिलाने में सहायक होती है, इसलिये मोक्षार्थी को चाहिए कि वह शास्त्राध्ययन का आश्रय ले ताकि अन्य लोगों को तथा स्वयं को संसार-समुद्र से पार उतार सके-मुक्ति दिला सके। 00 १६० उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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