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________________ २७. जिस प्रकार, (व्यन्तर जाति के) 'अनादृत' (नाम के) देव का आश्रय-स्थान 'सुदर्शन' नामक जम्बू वृक्ष (समस्त) वृक्षों में श्रेष्ठ होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत (भी, श्रुत-देवता का अधिष्ठान एवं समस्त साधुओं में श्रेष्ठ) हुआ करता है। २८. जिस प्रकार 'सलिला' (सदैव जल-प्रवाह से परिपूर्ण) “शीता' नदी (अपने उद्गम-स्थान) 'नीलवान' (मेरु के उत्तर में स्थित वर्षधर पर्वत) से प्रवाहित होकर, सागर की ओर जा (कर उसमें मिल)ने वाली, (एवं समस्त) नदियों में श्रेष्ट होती है, उसी प्रकार बहुश्रुत (भी सदैव निर्मल श्रुत-ज्ञान का धारक, उत्तम आचार्य/गुरु कुलोत्पन्न, समस्त मुनियों में श्रेष्ठ, तथा साधना करते हुए अन्त में शुद्ध चैतन्य व मुक्ति में अधिष्ठित हो जाने वाला) होता है। २६. जिस प्रकार, विविध (प्रकाशयुक्त) औषधियों से दीप्तिमान, तथा अत्यधिक महान् (विशाल व ऊंचा) मन्दर (मेरु) पर्वत (समस्त) पर्वतों में श्रेष्ठ होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत (भी सम्यक्त्व रूप प्रकाश को फैलाने वाले शास्त्रीय ज्ञान से तथा विविध ऋद्धि-लब्धियों से देदीप्यमान, श्रुतज्ञान व सद्गुणों के कारण से अत्यन्त महान् तथा समस्त साधुओं में श्रेष्ठ) हुआ करता है | ३०. जिस प्रकार, अक्षय जल-राशि वाला ‘स्वयम्भूरमण' (नामक) समुद्र विविध रत्नों से परिपूर्ण होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत (भी अगाध व अक्षय श्रुतज्ञान से पूर्ण, तथा विविध लब्धियों, सम्यक्त्व आदि रत्नों से सम्पन्न) हुआ करता है। ३१. समुद्र की गम्भीरता से समानता रखने वाले, (पर वादियों की) पहुंच से बाहर, (परीषहादि में) अविचलित व निर्भय, किसी से भी, दुष्पराजेय (या अजेय), विपुल श्रुत (ज्ञान) से पूर्ण, तायी/त्रायी (स्वयं के तथा षट्काय जीवों के रक्षक मुनि ही) कर्मों का क्षय कर उत्तम (सिद्ध) गति को प्राप्त हुए हैं। अध्ययन-११ १६७
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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