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________________ २३. जिस प्रकार, सहस्राक्ष (हजार आंखों वाला),' व्रजपाणि (हाथ में वज्र धारण करने वाला), तथा 'पुरन्दर' (शत्रुओं के नगरों को ध्वस्त करने वाला) इन्द्र (समस्त) देवों का स्वामी होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत (भी हजारों नय-दृष्टियों से सम्पन्न, क्षमा रूपी वज्र का धारक, रागादि शत्रुओं द्वारा अधिष्ठित शरीर-रूपी नगर को तपश्चर्या से निर्बल करने वाला एवं देवोपम साधु-संघ का व दैवी सम्पदा का स्वामी) हुआ करता है। २४. जिस प्रकार, (आकाश में) उदीयमान अन्धकार-विनाशक सूर्य अपने तेज से प्रज्वलित (दृष्टिगोचर) होता है, उसी तरह बहुश्रुत (भी अज्ञानान्धकार का विनाशक, विशुद्ध अध्यवसाय व विशुद्ध लेश्याओं के परिणामों के उत्कर्ष को क्रमशः प्राप्त होता हुआ, द्वादशविध तपश्चरण के कारण उत्कृष्ट तेज वाला) हुआ करता है। २५. जिस प्रकार, नक्षत्रों का अधिपति चन्द्रमा नक्षत्रों (के परिवार) से घिरा हुआ (तथा) पूर्णिमा के दिन (षोडश कलाओं से) परिपूर्ण (होकर, शान्तिप्रद, आह्लादकारक रूप में सुशोभित) होता है, उसी प्रकार, बहुश्रुत (भी जिज्ञासु मुनियों के परिवार से घिरा हुआ तथा सम्यक्त्व आदि कलाओं से पूर्ण होता हुआ भव्य जनों के लिए शान्तिप्रद, व आह्लाददायक) हुआ करता २६. जिस प्रकार, ‘सामाजिकों' (सामूहिक रूप से, सहकारिता के आधार पर संगठित किसानों व व्यापारियों की सोसाइटियों व समुदायों) का कोठार (अन्न-भण्डार) अच्छी तरह रक्षित, तथा विविध धान्यों से परिपूर्ण होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत (भी, कषाय रूपी चोरों के लिए दुष्प्रवेश्य, तथा समस्त संघ का जिस पर समान अधिकार हो-ऐसे विविध बहुमूल्य शास्त्रीय ज्ञान-भण्डार के रूप में सुशोभित) हुआ करता है। १. इन्द्र के अधीन ५०० मन्त्री होते हैं, उन मंत्रियों की हजार आंखों के आधार पर इन्द्र को 'सहस्राक्ष' कहा गया है- ऐसा विद्वानों का विवेचन है। २. 'उदीयमान' का अर्थ मध्यान्ह तक क्रमशः वर्द्धमान होने वाला सूर्य अभिप्रेत है। अध्ययन-११ १८५
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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