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२१.
१६. जिस प्रकार, तीक्ष्ण सींगों तथा परिपुष्ट स्कन्धों वाला बैल
(गो-वर्ग के पशुओं के) समूह का अधिपति होकर सुशोभित होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत (भी दोनों नयों या ज्ञान व क्रिया या स्वपर सिद्धान्त रूप तीक्ष्ण सींगों वाला, गच्छ/संघ के गुरुतर उत्तरदायित्व को वहन करने की सामर्थ्य से युक्त, तथा साधु-संघ
का अधिपति होकर सुशोभित) होता है। २०. जिस प्रकार तीक्ष्ण दाढ़ों वाला, उदग्र (पूर्ण यौवन को प्राप्त व
उत्कट) एवं दुष्पराजेय सिंह (वन्य) पशुओं में श्रेष्ठ (व प्रधान) होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत (भी 'नय' रूप दाढ़ों से युक्त, प्रतिभा के चरमोत्कर्ष को प्राप्त, तथा अन्यतीर्थिकों से अपराजित) हुआ करता है। जिस प्रकार, शंख, चक्र व गदा का धारक 'वासुदेव' अबाधित शक्ति-बल से सम्पन्न एवं (महान्) योद्धा होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत (भी अहिंसा-संयम-तप या सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र रूप तीन आध्यात्मिक गुणों/शक्तियों का धारक, विशिष्ट प्रतिभा-बल
व आध्यात्मिक तेज से युक्त तथा कर्म-शत्रु विजेता) होता है। २२. जिस प्रकार, 'चातुरन्त' (चारों दिशाओं की सीमा तक शासन
करने वाला, या चतुर्विध सैन्य' द्वारा शत्रुओं का अन्त करने वाला) चक्रवर्ती (षट्खण्डाधिपति) महान् ऋद्धियों (व लब्धियों) से सम्पन्न, तथा चौदह रत्नों का स्वामी होता है, उसी तरह बहुश्रुत (भी ज्ञान-दर्शन-चारित्र -तप में अप्रतिहत सामर्थ्य वाला, चारों दिशाओं में विस्तृत कीर्ति वाला, तथा इसी चतुर्विध आध्यात्मिक बल से चतुर्विध कषाय-शत्रुओं व चारों गतियों का अन्त करने वाला, विशिष्ट ऋद्धियों व लब्धियों से सम्पन्न, तथा चौदह ‘पूर्व' रूप ज्ञान-रत्नों का अधिपति) होता है।
१. हाथी, घोड़ा, रथ व पैदल योद्धा-ये चार प्रकार के सैन्य-अंग होते हैं। २. सेनापति, गृहपति (या गाथापति), पुरोहित, हाथी, घोड़ा, सूत्रधार (बढ़ई), स्त्री, चक्र, छत्र,
चर्म, मणि, काकिणी, खड्ग व दण्ड-ये १४ रत्न होते हैं। अध्ययन-११
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