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________________ 27 1mber 美国兴香香 अध्ययन परिचय बत्तीस गाथाओं से यह अध्ययन निर्मित हुआ है। प्रस्तुत अध्ययन का केन्द्रीय विषय है-ज्ञान-प्राप्ति के उपायों, विशिष्ट ज्ञानी के महत्त्व एवम् बहुमान की प्ररूपणा। 'बहुश्रुत' का सामान्य अर्थ है-विशुद्ध श्रुत-चारित्रसम्पन्न विशिष्ट शास्त्रार्थ-विज्ञ व्यक्ति । पारिभाषिक रूप में उत्कृष्टत: नौ-दस पूर्वी तक के (अर्थत: व शब्दतः) ज्ञानी को, और मध्यमतः वृहत्कल्प व्यवहार-सूत्र के ज्ञाता को 'बहुश्रुत' कहा जाता है। आचार प्रकल्प और निशीथ सूत्र का ज्ञाता जघन्य श्रेणी का होता है। चौदह पूर्वों का ज्ञाता सर्वोत्कृष्ट बहुश्रुत होता है। श्रुत का एक अर्थ ज्ञान भी है। इस अर्थ में बहुत ज्ञान से सम्पन्न 'बहुश्रुत' है। स्व-पर-कल्याण की साधना में सतत तत्पर रहते हुए मुक्ति या सिद्धि को वरण करने वाले होने के कारण 'बहुश्रुत' स्वभावतः पूजनीय होते हैं। पूजा से आशय है-विनीत व्यवहार। बहुश्रुतों के प्रति विनीत व्यवहार की रूपरेखा स्पष्ट करने के कारण इस अध्ययन का नाम 'बहुश्रुत-पूजा' रखा गया। बहुश्रुत होने का अर्थ निज-पर-कल्याण में समर्थ एवम् पूजनीय होना है। यदि समर्थ व पूजनीय होना है तो बहुश्रुत बनो। यह प्रेरणा देने और बहुश्रुत बनने का मार्ग स्पष्ट करने वाला अध्ययन होना इस नामकरण के औचित्य का एक और आधार है। इसीलिये यहां बहुश्रुत की श्रेष्ठता, तेजस्विता, आत्मिक शक्ति व अन्य प्रमुख विशेषताओं का वर्णन भी किया गया है। विविध प्रभावशाली उपमाओं के माध्यम से ये विशेषतायें निरूपित हुई हैं। ये बताती हैं कि बहुश्रुत होने का अर्थ असाधारण ज्ञान से सम्पन्न होना है। केवल ज्ञान की दिशा में अग्रसर होना है। ज्ञान, जैन धर्म में जानकारी का पर्याय नहीं है। जानकारी कितनी ही क्यों न हो, उस से सम्पन्न व्यक्ति को ज्ञानी नहीं माना जाता। जैन धर्म ज्ञानी उसे मानता है, जो विवेक-सम्मत व्यवहार का धनी हो। जो सम्यक् और मिथ्या ज्ञान का अन्तर समझता हो। जिसे सम्यक् ज्ञान पर श्रद्धा भी हो और विश्वास भी। जो आचरण में ज्ञान का सम्यक् उपयोग करने की योग्यता रखता हो और व्यवहार में उसे प्रतिबिम्बित करता हो। व्यवहार और भावना से जो ज्ञान युक्त न हो, वह चाहे जितना महान् हो, सच्चा ज्ञान नहीं होता। बहुश्रुत सच्चा ज्ञानी होता है। इसीलिये उसका ज्ञान प्रभाव-क्षमता से भरपूर होता है। अनेक गुणों से सम्पन्न होता है। स्पष्ट होता है। निर्मल होता है। ঊ १७२ उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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