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________________ अध्ययन परिचय यह बत्तीस गाथाओं से निर्मित अकाम-मरणीय नामक अध्ययन है। इस का केन्द्रीय विषय है-मृत्यु। मृत्यु जन्म लेने वाले जीव के जीवन की अनिवार्य घटना ही नहीं, एक कला भी है। अज्ञानी जीव सामान्यतः जीवन-भर, और विशेषतः जीवन के उत्तर भाग में, मृत्यु से त्रस्त रहते हैं। इस प्रकार एक जीवन में अनेक बार वे मृत्यु (भय) को प्राप्त होते हैं। इसका मूल कारण है-शारीरिक व सांसारिक जीवन से मोह। सत्यवेत्ता जीव इस मोह का अतिक्रमण करते हैं। मृत्यु उनके लिये त्रास का कारण नहीं बन पाती। मृत्यु-क्षण में भी वे भयभीत नहीं होते। मृत्यु उन्हें नियन्त्रित नहीं करती। वे मृत्यु को नियन्त्रित करते हैं। ऐसे साधक मृत्यु को मारने की राह पर अग्रसर होते हैं। मृत्यु, उनके लिये शाश्वत जीवन की कला बन जाती है। प्रस्तुत अध्ययन में मृत्यु की तलस्पर्शी विवेचना की गई है। अज्ञान-ग्रस्त व्यक्ति जैसी मृत्यु को अवांछनीय बताया गया है। ऐसी मृत्यु 'अकाम-मरण' है। इसके कारणों व परिणामों का व्यापक ज्ञान यहां मिलता है। इसलिये इस अध्ययन का नाम 'अकाम-मरणीय' रखा गया। इसका उददेश्य है-जीव को अकाम-मरण से सचेत कर 'सकाम-मरण' की ओर उन्मुख करना। प्रत्येक प्राणी के लिये 'मृत्यु' एक अनिवार्य घटना है। किन्तु यह मृत्यु जीवन का पूर्णतः विनाश नहीं है। आत्मा तो अजर-अमर है, उसकी मृत्यु कैसी? मृत्यु के बाद आत्मा मरती नहीं, अपितु स्वकर्मानुरूप अन्य गति में या अन्य भव धारण कर नया शरीर धारण करती है। इसलिए 'मृत्यु' वास्तव में जीव के शरीर व आत्मा को जोड़े रखने वाले पूर्वबद्ध आयु-कर्म का क्षीण हो जाना है। अत: तत्वज्ञानी व्यक्ति के लिये मृत्यु कोई दुःख की घटना नहीं है, अपितु एक सहज घटना है। इसके विपरीत, अज्ञानी जीव इसे कष्ट या दु:ख की घटना मानता है। अज्ञानी द्वारा मृत्यु के कष्टप्रद या अनिच्छित मानने के पीछे कुछ कारण हैं। उनमें एक तो यह है कि उन्होंने अपने जीवन में प्राय: अधर्माचरण या पापाचरण ही किया है और वे यह भी जानते हैं कि पापाचरण का दुष्फल नरकादि-गति ही है। अज्ञानी मृत्यु के समय अपने अनेक दुष्कर्मों को सोच कर या भावी दुर्गति की कल्पना कर और भी अधिक कष्ट का अनुभव करते हुए आगामी भव में भी दुर्गति से कष्ट पाते हैं। उक्त अज्ञानी/बाल जनों का मरण 'अकाम-मरण' होता है, क्योंकि वे ७० उत्तराध्ययन सूत्र
SR No.006300
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year1999
Total Pages922
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size125 MB
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