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३२४ ध्यानकल्पतरू. श्लोक-यस्यैन्द्रियाणी विषवषु निवृतत्तानि,
सङ्कल्प मप्य विकल्प विकार दोषैः योगै सदा विभिहर निशितान्तरात्मा,
ध्यानं तु शुक्ल मिति तत्प्रवदन्ति तज्ञः
यस्यार्थम्-१ जो इन्द्रियातीत होय अर्थात् पंच इन्द्रियोंकी २३७ विषय और २४० विकार, से निवृत हो शांत बन कूमार्गमे प्रवेश करनेसे अटक गइ. २ इच्छातित-अर्थात उनका मन सर्व प्रकारकी इच्छा चहासे निवृत गया. जिससे उनके चितमें किसीभी प्र ____* पांच इन्द्रिके २३ विषय और २४० विकार-१ भूर्तेन्द्री के जीव शब्द अजीव शब्द और मिश्र शब्द यह ३ विषय. यह ३ शुभ और ३ अशुभ यों ६. इन ६ पेराग और द्वेष ये १२ विकार. २ चक्षु इन्द्रीके काला, हरा, लाल, पीला, श्वेत, यह ५ विषय. यह ५ सचित, ५ अचित, और ६ मिश्र यों १५ शुभ और १५ अशुभ यो ३० पे राग और ३० पे द्वष यह ६० विकार. ३ घणेंद्रीके सु. गंध और दूगंध ये २ विषय. यह सचित अचित और मिश्र यों ६ पे राग और ६ पे द्वेष यह १२ विकार, ४ रसेंद्रो के खट्टा, -मीठा तीखा कड, कषायला ये ५ विषय. यह सचित अचित
और मिश्र ५ ये १५ शुभ और १५ अशुभ यो ३० इन ३० पे राग और ३ . पे द्वेष यों रसेंद्री के ६० विकार ५ स्पश्येन्द्री हलका, भारी शीत उष्ण रूक्ष चिक्कण नरम कठिण, ये ८ विषय यह सचित अचित मिश्र यों २४ शुभ और २४ अशुभ यों ४८ पे राग और ४८ पे द्वेष यों ९६. सर्व २३ विषय २४० विकार.