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________________ ध्यानकल्पतरू. को तोड, जगतका फंद छोड, चलों हमारे साथ, होवो झुशार, हम अपना शाश्वत अविछल मोक्ष नगरमें परमानन्द परम सुख मय शाश्वत स्थान हैवहां जाते हैं. आवो जो तुमारे को आना होय तो; वोही तुमारा घर है, वहां गये पीछे, पुनरावर्तिनही करना पड़ ता है, अनंत अक्षय अव्याबाध सुखमें, अनंत काल बांही रहना होगा. चेतो! चेतो!! चेतो!!! इत्यादी अहंत भगवंतका परमोत्कृष्ट धर्मोपदेश श्रवण कर फ. रसना कर, भूत कालमें अनंत जीव मोक्षछ गये, वृतमान कालमें संख्याते जीव मोक्ष जाते है, और भविष्य कालमें अनंत जीव मोक्ष जायंगे, इस लिये है आत्म अहो! मेरी प्यारी आत्मा! तूं महा भाग्योदयसे श्री जिनेश्वर भगवान का मार्ग पाया हैं, उनके यया तथ्य गुणकी पहचान हुइ हैं. तो उन्ह जैसा होनेके लिये उनके गुणोंमे लव लगा, उन्हीके हुकम प्रमाणे चल, उन्हने किये वोही कृत्य यथा योग्य कर, उन्ही रूप * अविवहार रासीमेसे ६ महीने और ८ समयमें १०८ जीव निकलके नियम कर विवहार रासीमें आते हैं ज्यादा भी नहीं तैसे कमीभी नहीं और इत्नेही जीव विवहार गसीमेंसे निक ल मोक्ष जाते हैं. तभी तीनही कालमें निगोदके एक शरीरमें के जीवोंका एक अंश भी कमी (खाली) नहीं होता है. ऐसा मुद्रष्ट तरंगणी दिगाम्बर ग्रन्थ में लिखा है.
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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