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________________ २५४ ध्यानकल्पतरू. पशु ओं बेचारे शीत, ताप, वृष्टी, भूख, प्यास सहन करतें है. काँटे, कंकर, कीचड, कीडे, वाली भोमीमें पडे जन्म पूरा करते है. घर वस्त्र रहित, हीन, दीन, गरीब अनाथ, घास फूस आदी निर्माल्य मिले जित्ला खा के संतोष करते है. ऐसे निपराधी को भी रसमधी निईयी मार डालते है. बन्धनमें डालते है. ऐसेही ग्रामके रह वासी गौ (गाय) महिषा (भैंस) दिकभी निर्माल्य वस्तु देवेंजित्नी खाके रहने वाले, खेतीयादी अनेक कालमें म. दत कर्ता दूध जैसे उत्तम पदार्थके दाता. मालिककी आज्ञामें चलने वाले गरीब बेचारेके उपर, असाह्य बजन भर देते है. कठिण बन्धन से बांधते है. कठोर प्रहार से मारते है. बहुत चलाते है. दुख से, रोग से, या थाक से, मुर्छित हो पडे हुवें को. श्वास रोक के उठातें है. खान पान पूरा नहीं देते है. और काम पूरा लेते है. और मतलब पूरा हुये. कृत्वनी कसाइ यादी कों बेंच देते है. वहां विष शस्त्र से आकले रीबा २ मारे जाते है. इन दीनो की करुणा करने वाला कौन है? ऐसी तिर्यच गति में अपना जीव अनंत वक्त उपजके दुःख भोगवने आया हैं. __३ मनुष्य गति-मनकी इच्छा मुजब साथ
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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