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________________ २५० ध्यानकल्पतरू - लक्ष नर्का वासे (उत्पति स्थान) हैं. इनमें रहे समद्रष्टी जीव तो स्वकृत कर्मोदय जाण, सम भाव से दुःख भोगवते हैं, और मिथा द्रष्ठी हाय त्रहा कर दुःख भो गवते हैं नर्क मे तीन तरह की वेदन १प्रमाधामी (य मदेव) क्रत २आपस की ३क्षत्र वेदना १ प्रमा धामी १५ जातके हैं १ 'अम्बे नेरीये को आमकी तरह मशलते हैं, २ अम्बरसे आम का रस निकाले त्योरक्त मांस हड्डी अलग २ करते हैं. ३ 'शाम' प्रहार करते हैं. ४ 'सबल' मांस निकालते हैं. ५ 'रुद्र' शस्त्रसे भेदते हैं. ६ 'महारुद्र' कलाइ की तरह टुकडे २ करते है. ७ 'काल'=अग्नीमें पचाते है. ८ 'महाकाल' चिमटेसे चर्म मांस तोडते है. ९ 'असि पत्र' शस्त्रसे काटते हैं. १० धनुष्य' शिकारी की माफिक धनुष्य बाणसे भेदते है. ११ 'कुंभ' कुभीमे पचाते है. १२ वाल-भाड मुंजे माफिक उष्ण रेतीमें भुंजते है. १३ वेतरणी अत्यंत उष्ण रससे भरी वेतरणी नामक नदीमे डालते है. १४ 'खरसर' शस्त्रसेभी अति तिक्षण पत्रवाला शामली वृक्षके नीचे बैठा पत्ते डालते है. १५ 'महाघोष' अन्धेरी कोटडीमें ठसोठस भरते है. यह नाम गुण कहे. परंतु इन शिवाय औरभी अनेक तरहके दुःख, कृत कर्मके
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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