SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीयशाखा-धर्मध्यान. २०७ ऐसी 'गडबढ' भी नहीं करें, ज्ञान फेरती वक्त 'अणु प्पेहा' अर्थात् उपयोग रक्खे. जो जो अक्षरोंका मुख से उच्चार होवें. उसका अर्थ अपने मनमें, विचारता जाय उसपे, द्रष्टी फेलाता जाय, इसमें बहुत्न गुणं हैं: "अणुप्पेहापणं, आउयवज्जाउ सत्र कस्म पगडीउ धणीय बंधाउ, सिढिल बंधण ब. 'द्धा उपकरेइ, दिह काल ठिइयाउ, रहस्स उ काल ठिइयाउपकरेइ; बहु पएस गाउ, अप्प पएस गाउपकरेइ, आउयं चणं कम्मं, सियबंधइ, सियनोबंधइ असायावेयणि जंचणं कम्म, नो भुजो २ उवचिणाइ, अणाइयंचणं, अणवगदगं, दीह, मद्धं, चउरंत संसार कंतारं, खिप्पा मेव वीइ वयइ' ३२ उत्तरा० अ० २९ अर्थात्-उपयोग युक्त ज्ञान फेरनेसे, या शब्द क अर्थ परमार्थ दीर्घ द्रष्टीसे विचारनेसे जीव आठ कर्म मेंसे आयुष्य कर्म छोड बाकीके ७ कर्मकी प्रकृति यों जो पहले निबड (मजबूत) बांधी होय, उसे स्थिल (ढीली) करे, ( जलदी छूट जाय ऐसी) बहुत काल तक भोगवणा पडे, ऐसा बंध बांधा होय तो; थोडेही कालमें छुटका होजाय ऐसी करे. तिब्र भाव (बीकट रससे उदय आने) की होवें, उसे मंद भाव (सरलपणे)
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy