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________________ २०२ ध्यामकल्पतरू समज होना है. सोही आत्म कल्याण करने वाली है. . इस वक्त कित्नेक ले भग्गूओं. अभीमान के मारे गुरु गम विन, पुस्तकी विद्या पढ २ पंडितराज बन बैठे हैं, उन्होंने बहुतसे स्थान अर्थका अनर्थ कर शास्त्रका शस्त्र बना दिया है; अनंत भव भ्रमण मिटा ने वाला पवित्र अहिंशा मय परम धर्म को हिंशामय कर अनंत भबका बढ़ाने वाला वना दिया है; इस लि येही चेताना पडता हे की मोक्षार्थियोंको अव्वल. ज्ञान दाता गुरुके गुणोंकी परिक्षा शास्त्रानुसार कर, उनके पाससे ज्ञान ग्रहण करना चाहीये. श्री सुयगडायंगजी सूलके ११ में अध्ययनमें धर्मोपदेशकके लक्षण इस प्रमाणे फरमायें हैं:गाथा आय गुत्ते सया दंते, छिन्न सोए अणासवे. जेधम्मं सुद्ध मइकाति, पडि पुन्न मणालिसं.२४ अर्थात् मन, बचन, काया, रूप, आत्माकों पाप मार्गमें जाती हुइ रोक, अपने वशमें करी है कूमार्गमें आत्माको नहीं जाने देते है, सदा पंच इन्द्रि, और मनको, विषय में निवार धर्म ध्यान में लगा रख्खा है. संसारका जो आरंभ परिग्रह रूप प्रवाह हैं, उसे बंद किया है. मिथ्यात्व, अवृत्त, प्रमाद. कषाय, और अशुभ जोग, इन पंच आश्रवों करके रहित हुये हैं,
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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