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________________ तृतीयशाखा-धर्मध्यान १८५ १८०० जोजन उंची जगा है. उसे मध्य (तिरछा) लोक कहते है. वहां मध्यमें तो एक लक्ष जोजन का उंचा और नीचे दश हजार जोजनका चौडा उपर एक हजार जोजन चौडा (मलस्थंभ जैसा) मेरु पर्वत है, उसके चारही तर्फ फिरता (चूडी जैसा) एक लक्ष जोजनका लम्बा चौडा (गोळ) 'जंबुद्विप हैं, उसके बाहिर चारही तर्फ ( चूडी जैसा ) फिरता दो लक्ष जोजनका चौडा 'लवण समुद्र' है. उसके चारही त. फै वैसाही फिरता चार लक्ष जोजन चौडा 'धातकी खंडद्विप' हैं. उसके चौगिर्दा ८ लक्ष जोजन चौडा 'कालोदधी समुद्र है। उसके चौगिर्दा १६ लक्ष जोजन चौडा 'पुष्कराद्वीप' हैं. यों एकेकको चौगिरदा फिरते और चौडासमें एकेकसे दुगणे, असंख्यात द्विप, और असंख्यात समुद्र, सब चूडी (बंगडी) के संस्थान में हैं. मेंरु पर्वतके जड में समभूमी हैं, वहांसे ७९० योजन उपर तारा मंडल, वहां से १० जोज उपर * सूर्य का + पुष्कर द्विपके मध्य भागमे गोळाकार (चुड़ा जैसा ) मानु : क्षेत्र पर्वत हैं. उसके अन्दरही मनुष्य की वस्ती हैं जंबुद्धिप धातकी खंड द्विप और आधा पुष्कराध द्विप यो अढाइ द्विप कहते हैं * चन्द्रमा का विमान सामान्य पणे १८०० कोश चौडा हैं सूर्यका १६०० कोशे चौडा. और ग्रह. नक्षेत्र. तारा के विमान जघन्य १२५ कोश. उत्कट ५०० कोश मोरे है ओर : -------
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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