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तृतीयशाखा-धर्मध्यान. पि धर्म ध्यानी, ज्ञानी की अज्ञानुसार, विपाक विषय का यथा शक्त विचार करते हुये कर्मों की विचित्रता से बाकेफ होतें हैं; वो कर्म बन्ध के कारण से बचके. कर्मक्षय करनेके मार्गमें प्रवृतन हो, अनंत अध्यात्मिक सुख प्राप्त करतें हैं.
चतुर्थ पत्र “संस्थान-विचय"
संस्थान नाम आकार का हैं. सोजगत का तथा जगत में रहे हुये पदार्थोंका, आकार का विचार करे. सो संस्थान विचय धर्म ध्यान. अनंत अकाश (पोलार) रुप अनंत क्षेत्र है. की जिसका अंतः पारही नहीं. उसे अलोक कहतें हैं, इस अलोक के मध्य भा ग में, ३४३ राजू घनाकार लम्बी चौडी जित्नी जगा में, जीवाजीव व रुपी अरुपी पदार्थ रुप एक पिंड हैं, उसे 'लोक' कहते हैं, यह लोक नीचे सातमी नर्क के तल ७ राजू का चौडा हैं, और उपर सात राजू आवें वहां मूल से घटता २, मध्य लोक के स्थान एक राज का चौढा है, और वहां से उपर चढते चौडास में बढते २, चार राजु (पांचमें देवलोक तक) आवे, वहां ५ राजू का चौडा है, और चौडास मे घटते २ तीन