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________________ बतीयशाखा-धर्मध्यान. १७१ का बध होता होय. वहां देखने बहुत ज़न खडे रहें, मनमें भाय की इसे किती वेग मारे अपन अपने घरजावे, उनके. तथा बहुत मतांतरी यों एकत्र हो सत्य देव गुरु धर्म की निंदा करे, उन्हके सामुदानी कर्म बंधते हैं. वो पाणी मे डूब. आगमें जल, या मारी प्लेगा दी के सपाटे में आ एकदम बहुत मनुष्य मारे जाते हैं. ८५ प्र--एक दम बहुत जीव स्वर्ग में कैसे नावे ? उ- धर्म मौत्सब. दिक्षा औत्सष. केवल औत्सव धर्म सभा बायखनीदमें बहुत जन मिल हर्षावें. वैराग्य भाव लावें. उसकी परसंस्या करे. सो एक दम बहुत जीव स्वर्ग या मोक्ष जावें. ___ ८६ प्र-कोइ बिना काम द्वेष करे इसका क्या सबव ? उ- परभव में किसी को दुःख दिया होय, उस का नुकशान किया होय तो बो बिना दोष ही देष धर ता हैं. ८७ प्र-विना स्नेही स्नेह जगे सो क्या सबब ? उ-- दुःख छोडाया होय. साता उपजाइ हो बन में पहाडमें या समानमें, निराधार हुये को आधार देनेसे. वो पीछा अचिंत्य दुःस्व में आके सहाय करे. विना कारण प्रेन करे. ८८ प्र--व्यंतरादी व्याधी से मुक्त न होवे सो क्या
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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