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________________ १६० ध्यानकल्पतरू. से भृष्ट करे, सत्धकी निदा करे, कू धर्म की महीमा करे. अधर्मीयोंकी संगत करनेसे पापात्मा होवे.. ३० प्र-धर्मात्मा कायसे होवे? उ-अधर्मीयों को धर्मी बनावे, धर्मोन्नती तन धनसे करनेसे. ३१ प्र-निर्बल कायस होवे? उ-दनि,गरीबों का सताये. अन्न बस्त्रकी अंतरायदे, निर्बलको दबावे, झगडाकरे. बध. बंधनकरे, अपने बलका अभीमान करे तो निर्बल होवे. - ३२ प्र--बलवंत कायसे होवे ? उ-दीन, अनाथ जीवोंकी दया कर साता उपजावें. संकटमें सहाय करे, अन्न वस्त्रादी प्रदान करे. तो बलवंत होवे. - ३३ प्र-कायर कायसे होवे? उ-अन्य जीवकों भय उपजावें, धस्का पाडे, इज्जतलूंटे, राज, पंच, चोर, सर्प, विष, अग्नी, पाणी, देव. भुत इन भयंकर वस्तुओं के नामलें, दूसरे को भय भीतकरे, पशुओं को त्रासदायक बनावे व चमकावें, उन्हे देखहर्षावे, सो कायर होवें. '. ३४ प्र-सुरवीर कायसे होवे? उ--दीन, दुःखी, अपराधीको अभयदानदे, भयसे बचावें उपद्रव मिटावे, सो सूरवीर होवे. २५ -कपण कायमे हो र-उने दव्य (धन
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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