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ध्यानकल्पतरू.
अमृत समान इन ५ गुणोंको विषयमें लगा, विष (जेहर) रूप बना, दोनो भव में दुःखके भुक्ता होते है; इस लिये इसे विषय ( जेहर) के नामसे बोलाये है.
३ " कषाय " = क्रोध, मान, माया, और लोभ, यह चारही कषाय महा पापका मूल है. इनके वशमें हो जीव आपा ( भान) भूल जाता है. आत्मघात, द्रव्यनाश, यशकी क्ष्वारी, कुलका संहार, अयोग्य कार्य करते बिलकूल अचकाते नहीं है. निबल अनाथ को स्व प्रक्राम से और बलिष्टोको दगासें नष्ट कर महा पापोंसे अपणी आत्माको मलीन कर, दोनो लोक में दुःखके भुक्ता होते हैं. इस लिये इन्हें कषाय, ( कर्म का रस आय) या कसाई (घातकी) नामसे बोलाते हैं.
४ “निंदा " = इस शहके दो अर्थ होतें है. (१) निंदा ( निंद्या) इसे दशवैकालिक शास्त्रमें कहा है की, "पीठं मासं न खाइज्जा " अर्थात् किसीके पीछे निंदा ( दुर्गुण प्रगट) करना है. उसे मांस भक्षण जैसा बता या है. निंदक ज्ञानी शुद्धाचारी, प्रभावक, धर्मोन्नती कर्ता, तपस्वी, क्षमाशील, वगैरे के गुणानुवाद श्रवण कर सहन नहीं कर सका हैं, और उन्हे ढांकने उनकी निंदा करता है, अच्छते आल बजा देता है. कूतर्कोसें उनकी भक्तीपे भोले लोकों के भव उतारता है. ऐसी