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________________ १२८ ध्यानकल्पतरू. के हरेक वस्तु काममें ले. अयोग्य वस्तु यत्नासें एकांत परिठावे (डालदे) यह १७ प्रकारके संयम और असण दो घडी, या जाव जीव अहार त्यागे. २ उणोदरी उपाधी और कषाय कमी करे. ३ भिक्षाचारीसे उपजीवे. ४ रस (विगय) का परित्याग करे. ५ कायाको लोचादी क्लेश दे, ६ प्रतिसलिनता-इन्द्रीयों कषाय योग, को प्रवृत्ती घटावें ७ लगे पापका प्रायाछत ले शुद्ध हावे ८-१२ विनय वयवच्च, सझाय, ध्यान, का उत्सर्ग करें, यह १२ प्रकारका तप ज्ञान युक्त करके अपणी. आत्माको भावते (आत्मामें रमण करते) हुवे विचरे प्रवृत्तै. और भी भगवानने श्री उत्तराध्ययनजी सूत्र में फरमाया है की “समय गोमय म पम्माय" अर्थात् हे गौतुम तथा मुमुक्षु जीवों अतम साधन मोक्ष प्राप्त करने के उपाय के कार्य में किंचित समय (वक्त) भी प्रमाद मत करो! _ “पांच प्रमाद." . मद विषय कषाय,निंदा विकहा पंच भणीया. गाथा HAL एए पंच पम्माया,जीवा पड्डुति संसारे. . १मद जाति, कुल, बल, रूप, लाभ, ज्ञान
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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