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१२२ ध्यानकल्पतरू. से उपयोग में आवे वहां तक के पापोंके तर्फ द्रष्ट लगाने से रोमांच होते हैं. ऐसा महा पाप करके यह संसार भरा हैं और एकेक वैपारमें द्रष्ट लगाके देखो किना जुलम निपजता हैं. कित्येक पापतो अपने जाण में होते है. और कित्नेक महा घोर जगतके पातकोंसे अपन वाकेफ भी नहीं हैं. तो भी उनकी अवृत्त (पापका हिस्सा) अपञ्चखाणी सब जीवोंको लग रहा हैं. जैसे घरके किमाड न लगाये तो विना जाणे देखे, और विना मनभी कचरा घरमें घुस जाता है. तैसे वि. न पच्चखाण किये पाप आत्माको लगता हैं. ऐसा जाण मुमुक्षु जीवोंको बारेही अवृत्त रोकना चाहीये.
५“मिथ्यात्व" इस जीवने इस संसारमें अनंत परिभ्रमण किया उसका हेतू मिथ्यात्व ही हैं, यह छू. टना बहुतही मुशकिल है. क्योंकि अनादी कालका सोबती हैं. और इसके छूटे बिन मोक्ष नहीं मिले, इ. सके लिये मुमुक्षु को इन की पहचान जरूरही करना चाहीये. इनके मुख्य ५ भेद हैं.
१ "अभिग्रह मिथ्यात्व" खोटा पक्ष पक्का धार ण करे, अर्थात् जो अज्ञान मद, क्रोध, मान, माया, लोभ, रति, अरति, निद्रा, शोक, झूट, चोरी, मत्सर, भय,हिंशा,प्रेम,क्रिडा, हांस यह १८ दोष युक्त होवे उ