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________________ ध्यानकल्पतरू. के नशेके जैसा. आयूष्यखोडे जैसा. नाम-कुम्भार जैसा गौत्र-चित्रकार जैसा; और अंतराय पहरायत जैसा है. (४) 'प्रदेशबन्ध'का स्वभाव, जैसे वह मोदक कोइ दु गणी, और कोइ तिगुणी सक्करके होते हैं, तैसे किले क कर्मका बन्ध स्थिल (ढीला) और किनेका निवड (मजबूत) होता है, कोइ हश थोडी स्थितीवाले, और कोइ दीर्घ (लाम्बी) स्थितीवाले. होते हैं... ___ इन चार बन्धमेंसे, प्रकृती और प्रदेश बंध तो योगोंसे होता है. तथा स्थिती और अनुभाग बन्ध कषायोंसे होता हैं. इन बन्धनसे जीव आनादीसे बन्धा है. किसीको तिबरसोदय, और किसीको भंद रसोदय हुवा है. ऐसे जगतवासी जीवोंके देखते हैं की कोइ क्ररुर प्रकृती वाले, और कोइ शांत प्रकृतीवाले, कोइ दीर्घायुषी तो कोइ अल्पायुषी, कोई सूसंयोगी तो कोइ दूसंयोगी, और कोई सूवर्ण सूसंस्थानी तो कोइ दुवर्ण दुसंस्थानी. इत्यादीके प्रसंगसे अच्छेपे रा ग और बुरेपे द्वेश नहीं करना, क्यों कि वो बेचारे क्या करें, जैसा २ जिनकें बन्धोदय हुवा है. वैसा वैसा संयोग बना है, इसे पलटानेकी उनमें सत्ता है, जो अपन उनको खोडीले कहै! इत्यादि विचारसे, स्वस श्री नागो An in resी
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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