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________________ १०६ ध्यानकल्पतरू. रोगोंसें, सड, कीडेपड, मरके नर्कमें पोलादकी गर्मागर्म पूतलीके साथ गमन करते अक्रांद करते है. ऐसे दुःखके सागर विषयको सर्व सुख सागर माने वो शाणा कैसा. ७ इश तमाशेपे लक्ष दे, धर्म ध्यानी पंचन्द्रियके विषय भोगकी अभीलाशा रूप अज्ञानताको दूर कर, निर्विषयी-निर्विकारी-बन सुखी होते हैं. 'दया-द्र भावः' श्री सुयगड़ांग सूत्रके द्वितीय श्रत्स्कंधके प्रथम अध्ययन में भगवंतने फरमाया हैं. PNA तत्थ खलु भगवंता छ जीवनिकाय हेउ पणता तंजहा, पुढ़वी काए जाव तसकाUE ए, से जहाणामए मम अस्सायं दंडेणवा का अठीणवा. मुठीणवा, लेलूणवा, कवाले । णवा, आउट्टिज्जमाणसवा, हम्ममाणस्सवा तजिज्जमाणस्सवा. ताडिज्जमाणस्सवा. परियाविज्ज माणस्सवा. किलाविज्जमाणस्सवा. उद्दविज्जमाणरसंवा; जाव लोमुख्वणणमायमवि हिंशाकारगं दुख्खं भयं प * सवैया-दीपक देख पतंग जला. और स्वरशद सुण मृग दुः खदाइ; सुगंधलेइ मरा भ्रमरा और, रसके काजमच्छी घिरलाइ कामके काज खुता गजराज, यह परपंच महा दुःखदाइ; जो अम
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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