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तृतीयशाखा-धर्मध्यान ९९ तो पाणीके उपरही रहनेका होता है; परन्तु उसपेको इ मट्टीके और सनके ८ लेप लगाके, सुकाके, पाणीमें डाले तो तुर्त पातलमें बेठ जाताहैः फिर पाणीके से योगसे उसके लेप गलने से वो उपर आताहै, तैसेही जीव रुप तुम्बा, अष्ट कर्म रुपये लेपकर, संसारमेंडबरहाहै; उन लेपोंको गलाने, मुमुक्षुजन द्वादश (१२) प्रकार की तपस्या कर, कर्म लेपको गाल, संसारके अग्र भागमें जो अनंत अक्षय सुख मय मोक्ष स्थानहै, उसे प्राप्त करतेहै.
१० “लोकभावना" अनंत्तानंत आकाश रुप अलोकके मध्य भागम, ४४३घनाकार राज जिले क्षेत्र में लोक हैं, लोककें मध्यमें १४ राजू लन्बी और राज चौडी त्रस नाल हैं. उसमें त्रस और स्थावर जीव भरे है, और बाकीका सर्व लोक एक स्थावर जीवहीसे भरा हैं. लोक के उपर अग्र भागमें सिद्ध स्थान हैं. जो जीव कर्म से मुक्त होतें (छूटते) है; वो सिद्ध स्थान में विराजमान होते हैं. फिर वहां से कदापी चलाय
___*३,८१,२७,९७. मण लोहके एक गांको एक भार कहते हैं. ऐसे हजार गोलेका एक गोला बना. कोइ देस्ता बहुत उपरसे छोडे, वो १ महान, ६ महर, ६ दिन, ६ घडीमें निना क्षेत्र उही सो एक राज क्षेत्र