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________________ तृतीयशाखा-धर्मध्यान. ९१ । ख्यात सर्वथा दोषरहित ९"दंसण" दर्शन-देखे या दरशे सों दर्शन ४ हैं. १ चक्षू दर्शन, आखोंसे देखे) २ अचक्षुदर्शन आं. खविना चार इन्द्रिसे और मनले दरशे) ३ अवधी दर्शन. (रुपीपदार्थ दुरके देखे और ५ केवल दर्शन सर्व द्रव्य. क्षेत्र, काल भाव देखे दर्श) १०"लेसा” कर्मसे जीवको लेशे (लेप चडावे. वह लेशा ६ हैं. १ 'कृष्ण लेशा' महा पापी २ नील लेशा' अधर्मी ३ 'कापूलेशा' वक्रस्वभावी, धीठ ४'ते. जलेशा न्यायवंत ५ 'पद्मलेशा' धर्मात्मा ६ 'सुक्ललेशा मोक्षार्थी और अलेशी अयोगी केवली व सिद्ध भगवत' ११“भव" संसारमें जीव दो तरहके हैं;१भव्य वह मोक्षगामी. और २'अभव्य' वह कदापि मोक्ष न जाय. (नो भव्यामध्य सिद्ध भगवंत.) १२ “सन्नि” संसारमें जीव दो तरहके १ 'सन्नि वह ज्ञान व मन युक्त; मातापिताके संयोगसे उत्पन्न होये लो, मनुष्य तिर्यंच और देवता ओं तथा नेरिये. और २ 'असन्नी' वह पांच स्थावर, तीन विकलेंद्री और समछिम माता पिता विन हुये मनुष्य, तिर्यंच, पचेंद्री. (नो सन्ना सन्नी सिद्ध भगवंत) . १३ सम्मे' यथार्थ पदार्थ की श्रद्धा वह सम्थ
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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