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________________ ही नहीं अटका सके तो मैं बिचारा कौनसी गिनतीमें, परन्तु जो कार्यारंभ किया उसका यथातथ्य स्वरूप यथा बुधि दर्शानायह ग्रन्थ कारकका मुख्य प्रयोजनहै, इसी सबब संसारमें प्रवृतती हुई बातोंका चित्रइसमें आया है. ___ यहतो निश्चय समाझयेकि अब्बलके दोनो ध्यान एकांत निषेधकही हैं, वो छूटने सेही आत्मा सु खानुभव कर शक्तीहै. परन्तु ऐसा नहीं समझियोक खोटेध्यानी सर्व संसारी जन हैं सो सबकी कुगती होगी हां! यहतो निश्चय है कि खोटे ध्यानसे कुगती हीहो ती है. परन्तु ऐसा नहींहै की सर्व संसारीयो एकान्त कु-ध्यान केही ध्याने वाले है, क्योंकी बहुतसे संसा री वक्तसर धर्म ध्यानभी ध्याते हैं और अच्छे धर्म कृ सभी करते है. जिससे शुभाशुभ फलकी मिश्रता होने से. उनको सुखमिश्र देव गतीकी प्राप्ती होतीहै, वहां भी धर्म ध्यान ध्यानसे पुनःउच्च मनुष्य गतीको प्राप्त हो फिर शूभ ध्यानकी विषेशता होनेसे शुद्ध ध्यानको प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त कर सकेंगे. अमोलख ऋषि.
SR No.006299
Book TitleDhyan Kalptaru
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherKundanmal Ghummarmal Seth
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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