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'अवेस्ता' में प्राप्त होता है। वैदिक परम्परा के 'कालिका पुराण' में भी हिन्दू-शब्द का उल्लेख इस प्रकार प्राप्त होता है:
बलिना कलिनऽऽच्छन्ने धर्मे कवलिते कलौ।
यवनैरवनी क्रान्ता हिन्दवो विन्ध्यमाविशन् ।
- जब बलवान् कलिकाल ने सभी को अपनी चपेट में लेकर धर्म को अपना ग्रास बना लिया, और यवन लोगों ने पृथ्वी पर आक्रमण किया, तब हिन्दू लोग विन्ध्य की ओर प्रस्थान कर गये।
'शार्ङ्गधर पद्धति' में भी इसी भाव का लोक मिलता है। निष्कर्ष यह है कि हिन्दू शब्द 'सिन्धु' के समीपवर्ती जाति या
समुदाय का वाचक होता हुआ, परवर्ती काल में पूरे भारतीयों के लिए प्रयुक्त होने लगा । अतः वैदिक व जैन-दोनों धर्म इसी क्षेत्र की देन हैं, उपज हैं, इसी क्षेत्रवासियों के पृथक्-पृथक् सांस्कृतिक विचारधाराओं के अंग हैं, इसलिए 'हिन्दू संस्कृति' शब्द को भारतीय संस्कृति का ही पर्याय मानना असंगत नहीं।
हिन्दू कौन?
'हिन्दू' किसे कहें- इस सम्बन्ध में भारतीय मनीषियों ने विविध विचार प्रकट किए हैं। वीर सावरकर ने निम्नलिखित परिभाषा दी है जो अत्यधिक चर्चा में रही है:
आसिन्धोः सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिका। पितृभूः पुण्यभूश्चैव, स वै हिन्दुरिति स्मृतः ॥
अर्थात् सिन्धु से लेकर समुद्र-पर्यन्त विस्तृत भू-खण्ड में बसने वाले सभी लोग -जो भारत को पितृभूमि व पूण्यभूमि मानते हैं- 'हिन्दू' कहलाने के अधिकारी हैं।
महात्मा विनोबा जी ने भी 'हिन्दू' की परिभाषा इस प्रकार दी है:
प्रथम खण्ड/9