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ना डोल, न डु लाइ चु देव,
रोही सुरंगि, आ बु चउ सेव॥४४॥ राण पुरि, सा द डी, कुंभ ल मे र,
दे लु ले, दुर्जन कीधा जेर । च उ खं भो स्वामी, समीधो दिट्ठ
झाडु ली उ, धार, दे वा सु विसिटु ॥४५॥ गुल वा डी उ, सो आम ले स र राण
बला जो देव, नमो ति लगा ण । थुण्यो प्रभु भी ल डी, ब ड ली माहि,
वी स ल पु रि, वंदी पो सी ने उछाहि॥४६॥ म हि सा णी उ, सत्य की, सो सिद्ध पुर,
नवसारी, सूरत, राधि न पुर । सा मी म ही म दा बा द पा र स नाथ
वंदी कर मागी महोदय साथ॥४७॥ मृग पल्ली गाम उ ना ओ पास
राज न पुरि रंगि रमिजे रास। राज नगर मांहि, आदि ठाम अनेक
वंदीजे पास जिणंद विवेक ॥४८॥
पूर्वछायु ।। करू विवेके वंदना, नाम न जाणुं छेक । नमो नमो त्रीह भुवन जे तीरथ अवर अनेक ॥४९॥
रूपक प्रमाणिका छंद ॥ अनेक ईम तूतणा तीरथ नाम छे घणा। में बुद्धिहीन बालके कहिवाइ सर्व सीद्ध के ।।५०।। ते लक्ष कोट सह मिली सो नाम; एके तूं वली। अनंत सिद्ध संकरो, सो पास श्री संखे सरो ॥५१।।