SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वरदाता माता जगि जाणी श्रीजिन-मुख-वासिनी वखाणी। तूठी कविजन कोडि कल्याणी सा स र स्व ती वरसति वरवाणी॥१०॥ वाणी कर वीणा रस लीणी आदि शक्ति सप्तस्वर मीणी । हंसासणि केसरिकटि झीणी बालकुंआरी पुस्तक प्रीणी ।।११।। प्रीणी सा संभारूं साची गणधर-मुख-मंडपि जाय नाची। आगम वेद पुराणे वाची वाणी दिद्ध सुधा जिम जाची ॥१२॥ जाची भाख द्राख जिम साकर वन्निसु पास परम परमेसर । भावट्ठि भंजन देव दयापर तू ठाकुर हू तोरो चाकर ।।१३।। पूर्वछायु ॥ चाकर च म रा दि क असुर से निर्जर नाग विद्याधर, नर चक्कवे पौलो मी पति पाग ॥१४॥ रूपक अडयल छंद ॥ पागिरमें परतखि ज खि पा स ह प उ मा व इ पदकमल उपासह । छोड बंधु बंधव, भवपासह, नमो नमो संखे स र पा स ह ।।१५।। टोली नवल्ल मली अ स रा सह तान मान गावे गुण रासह । अवर देव अंतरज निरासह जिम हरि हस्तिमल्लइ निरासह ।।१६।। जेहने संग नही प्रमदा सह देव देव तेहना हूं दासह। करूं विनती थइ उदासह राखि राखि मुझ शरणि मुदा सह ।।१७।। तोथी अवर न कोइ सपराणो ताह्यरि करिजो रास पुराणो । तं जिम कहे तिम रहि वपुराणो तू अघ दहे नवीन पुराणो ।।१८।। पूर्वछायु ॥ राणो राणि मिली सहू तुह पय पूजे पा स । तें बहु तीरथि पोहोवि तलि कि बहु नाम निवास ॥१९॥ रूपक प्रमाणिका छंद ।। निवास पास किद्धउ अनेकधा प्रसिद्धउ । समहीम नाम लीद्धउ, अनंत सुख दिद्धउ ॥२०॥
SR No.006296
Book TitleTran Prachin Gujarati Krutio
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSharlotte Crouse, Subhadraevi
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1951
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy