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की आज्ञा (धर्म) को स्वीकार किया तो ही जन्म प्राप्तिका सार किया ऐसा समझना, नहीं तो उस अधम मनुष्य का जन्म श्वान-कुत्ते व शूकर ( सूवर ) से भी खराब जानना, क्यों कि कुत्ता जिसका अन्न भक्षण कर अपने शरीर का रक्षण करता है उसकी भक्ति जैसी करता है वैसी मनुष्य करता है क्या ? नहीं, कदापि नहीं । देखो जिस धर्म पुण्य की कृपा से अपनेको सर्वोत्तम मनुष्य देह, सुख, संपत्ति, संतति आदि की प्राप्ति हई है. उस धर्म की कभी याद भी आती है ? और काम क्रोध, मद, मोह, लोभ, मत्सर ट्रिपु के प्रसंग से अपनने चौरासी लक्ष जीवा जौनीमें अनेक प्रकार के दुःख भोगे हैं उनका भी कभी स्मरण होता है ? ऐसे अधम पापी मनुष्य को किस की उपमा देना । भतृहरिराजा ने नीतिशतक में कहा है कि:
येषां न विद्या न तपो न दानं, । न जाप शीलं न गुणो न धमः ॥