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________________ [ ८२ ] मूंजी साहकारनों स्तवन । मैंतो मुजी साहकार, पैसा खरच नहीं लगार ॥टेर ॥ साधु संतके कबहूं न जाउं, वे कहे वारंवार । सुकृत कर. लो, लाभ लूटलो, सुणता जागे खार ॥१॥ दूध दही कहूं नहीं खांउ, जो खांउ तो छाच । एक वक्त जो वस्त्र पहन, वर्ष चलाऊ पांच ॥२॥ मुंजीके घर व्याह रच्यो, घर खिया सपझावे । घरकी मिल सब गीत गायलो, सोपारिया बच जावे ॥३॥ मरूं तो सिखळा जाउं कुटंबने, दान पुण्य नहीं करना । नहीं खाना और नहीं खिलाना, जोड जमी विचधरना ॥४॥ कौडी २ संचय कर सब, परभवमें लंकार । गुरु प्रसाद चौधमल कहे, ऐसी हीनी पार ॥५॥ महावीर स्वामीनो स्तवन । तुम माल खरीदो,त्रिशला नंदनकी खुली दुकानजी॥टेर॥ शास्त्ररूप भरी बहु पेरियां, मुनिवर बने बजाजी । वजह २ का माल देखलो, कर अपना मनराजी हो ।। तुम ॥ १ ॥ जिनवाणीको गज है सांचो, जरा फर्क मत जाण । माप२ सत्गुरु देवे छ, मत कर खेंचाताणजी ॥ तुम ॥ २ ॥ जीवदयाकी मलमल भारी, शुद्ध मन मिसरलीजे । उबल. मीण समता तणोसर. चावे सो कह दीजेजी ।। तुम ॥ ३॥ समताको बंदागत भारी, साडीले संतोष । ऐसा कर व्यापार जिन्होंसे, चेतन पावे मोक्षजी ।। तुम ॥४॥ खुशी होय तो सोश' लेवो. नहीं अगटेका काम । मन
SR No.006293
Book TitleSaddharm Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherNanebai Lakhmichand Gaiakwad
Publication Year1863
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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