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________________ [ ७४ ] इस प्रकार संतोष प्राप्त किए बिना अन्य कितने ही प्रयत्न करो परन्तु इच्छा तृप्त होनेवाली नहीं है। तृष्णाके प्रेरे मनुष्य अन्तको अकाल मृत्यु के ग्रास होकर आगे के जन्म में भी ऊपर कहे अनु सार दुःखके भोक्ता होते हैं, ऐसे लोभरूप शत्रुका पराजय करनेके लिए सन्तोषरूप शख धारण करना परमोचित है । अब विचार करना चाहिए कि कितनी सम्पत्ति हुई तो भी खानेके लिए शेर भर अन्न, शरीर ढकनेके [पहरनेके] लिए २५ हाथ कपड़ा और रहनेके लिए चार हाथ जगह इतना ही सबके काममें आता है । ज्यादा होता है वह सब योंही पड़ा रहता है, विशेषमें उसका प्रबन्ध करनेके लिए सदैव चिंतातुर रहते हैं, ज्यादा जो हो वह किस कामका ? और उससे विशेष सुख किस प्रकार मिल सकता है। मनुष्यों ! अपने देव तथा तकदीरका भरोसा रक्खो । सबैया - यद्यपि द्रव्यकी सोच करे | कहां गर्भ में केतो गांठको खायो ||
SR No.006293
Book TitleSaddharm Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherNanebai Lakhmichand Gaiakwad
Publication Year1863
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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