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[ ७२ । भी किसीका नहीं है, जिसको तू मेरा २ कहता है वे तेरे नहीं हैं,सब कुटुंब स्वार्थी (मतलबी) है जब तक मरे पास धन है और तरा शरीर बलवंत है तब तक ही तू सबको अच्छा लगता है, तबतक ही सब तेरा सत्कार करते हैं, तेरी आज्ञामें चलते हैं, जब तेरे पासका धन लुट जायगा तथा तू द्रव्योपार्जन करने में असमर्थ हो जायगा तब तुझे कोई भी न पूछेगे उल्टा झगडा करेंगे और जो संपत्ति पर मोह रह गया तो तू मरकर भूत, सर्प, कीडा वगैरा बनकर उसमें उत्पन्न होगा। कहा है कि 'आसा जहां वासा' ऐसा मोह दोनों लोकमें दुःख दनेवाला होता है, इसलिए इस मोहको छोडना ही उचित है । सबैया-मेरी मेरी क्या करेंरे मूरख,
तेरी कहे क्या होगई तेरी । जैसे बाप दादा गए छोर के,
तैसे ही तृ भी जायगा छोडी। मारेगा काल चपेट अचानक,
होगी घडी में राग्व की हरी । मुन्दर ले चलरे कुछ संगत,
भला कहे नर मेरी रे मेरी ।।