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[ ५३ ] का एक वर्ष में जितना पाप होता है उतना पाप एक ही दिन विना छाना पानी पीनेवालेको लगता है । इसलिए धर्मेच्छु मनुष्योंविंशत्यगुलमानं तु । त्रिंशदंगुलमायतं ॥ तद्वस्त्रं द्विगुणीकृत्य । गालयेजलमापिबेत् ॥ तस्मिन् वस्त्रे स्थितान् जीवान स्थापयेजलमध्यमे ॥ एवं कृत्वा पिबेत्तीयं । स याति परमां गतिम् ॥
अर्थात्-२० अंगुलका चौडा और ३० अंगुल का लंबा ऐसे वस्त्रको दोहरा करके उसमें पानी छान कर उस गलते में रही हुई जीवानी जिस स्थान का पानी हो उस स्थान में पीछा डाल कर पानी वापरता है वह परम गति-देवगतिको प्राप्त जाता है । विना देखे वस्तु वापरनेका बडा दोष.
मकान, वस्त्र, पक्वान्न, आटा, दाल, भाजी, पानी, ऊखल, घट्टी, चूला, लकडी, छाने, बरतन वगैरा कोई भी वस्तु आंखोंसे विना देखे कभी भी काममें लेना नहीं, क्यों कि.-कितनी ही वस्तुओं में त्रसजीव अपना घर बनाकर रहते हैं, कित