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________________ [ ५० ] हृन्नाभिपद्मसंकोचश्चण्डरोचेरपायतः ॥ अतो नक्तं न भोक्तव्यं सूक्ष्मजीववधादपि । अर्थात्-सूर्य अस्त हुएके पश्चात् हृदयकमल और नाभिकमल संकोच पाते हैं-मूंद जाते हैं, इसलिए रात्रीभोजन करनेसे अनेक रोगोंका उद्भव होता है और सूक्ष्म जीवोंका घात भी होता है। मेधां पिपीलका हन्ति । यूका कुर्याजलोदरम् ।। कुरुते मक्षिका वान्तिं । कुष्टरांगञ्च कौलिकः ॥१॥ कंटको दारुखण्डं च । वितनोति गलव्यथाम् ॥ ब्याजनातनिपातितं । तालं विद्धयन्ति वृश्चिकाः॥२॥ अर्थात्-चींटीका भक्षण करनेसे बुद्धि नष्ट होती है, यूका [ज्यू का भक्षण करनेसे वान्तीकै हो जाती है, मकडीके भक्षणसे कुष्ठ [कोड] का रोग होता है, कांटेका भक्षण होनेसे गंडमाल-रोग होता है, केस [बाल] आजावे तो स्वरभंग होता है, बिच्छका कांटा आजावे तो तलवेमें छिद्र पडता है, ऐसे अनेक भयंकर रोगोत्पादक रात्रिभोजन है। अस्तं गते दिवानाथे । आपो रुधिरमुच्यते ॥ अन्नं मांसं समं प्रोक्तं । मार्कडेयमहर्षिणा ।।
SR No.006293
Book TitleSaddharm Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherNanebai Lakhmichand Gaiakwad
Publication Year1863
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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