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________________ [३३] नहीं किया है विचारो! [अ] न्यूनता विना इच्छा नहीं होगी, [आ] विना इच्छाके कोई भी कुछ करता नहीं है, [इ] इच्छा है वही दुःख है, [ई] कार्य करना वह कर्म है, [3] कर्मके फल अवश्य भोगने पडते हैं और यह दुर्गुण ईश्वरको लागू नहीं होते हैं क्यों कि [अ] ईश्वरमें कुछ न्यूनता नहीं है, [आ] इसलिए उनको किसी कार्य करनेकी इच्छा ही नहीं होती है, [इ] वे तो परमानन्दी परमसुखी हैं, [ई] कर्म करते भी नहीं हैं और [3] उनको भोगनेको उनकी पुनरावृत्ति (जन्म धारण करना) होता नहीं है, वे ही सच्चे ईश्वर हैं। प्राणी जैसे २ कर्म करता है वैसी २ योनिमें जन्म लेता है इस. लिए किसीके भक्षण करनेको कोई उत्पन्न नहीं हुआ है + । अच्छा जैसे तुम्हारे खानेके लिए + सुखस्य दुःश्वस्य न कोपि दाता, परो ददाताप्ति कुबुदिरेषा। पुराकृतं कर्म तदेव भुज्यते, शरीरकार्य खलु यत्वया कृतम् ।। चाणक्य अ०८ श्लोक ५ अर्थ---सुख दुःखका कोई देनेवाला नहीं है, पूर्वकृत कर्मानुसार जीव सुख दुःख भोगते हैं।
SR No.006293
Book TitleSaddharm Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherNanebai Lakhmichand Gaiakwad
Publication Year1863
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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