SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १ नाशिक, पूर्वखानदेश अने पश्चिमखानदेशना जील्लाओमां एवा सेंकडो नैनो छे, के जेओ पहेलां मूर्तिपूजक हता, परन्तु संवेगी साधुओना विहारना अभावे तेओ स्थानकवासी थइ गया छे, आवीज स्थिति मेवाड, मारवाड अने माळवानां गामोमां-न्हानां न्हानां गामोमां पण थइ गइ छे. वात खरीज छे के फरे ते चरे. जोके ए न्हानां न्हानां गामोना लोको स्वभावे सरळ अने कदाग्रह विनाना होय छे, · अने तेथी तेवा लोकोने साधुओनो समागम थाय, अने सत्य उपदेश मळे तो तेओ जल्दी रस्ता ऊपर आवी शके तेम छे. __ २ मारा धारवा प्रमाणे स्थानकवासी मुनिओ पोतानो प्रभाव गामडामा रहेनारा भद्रिक श्वे० मूर्तिपूजक ऊपरज कंइक पाडी शके छे. अन्य दर्शनियोने जैन बनाववानी वाततो दूर रही, परन्तु दिगम्बर जैनो ऊपर पण पोतानो प्रभाव पाडी शकता नथी. अने तेने लइनेज बुंदेलखंड अने संयुक्तप्रांतोमा दिगम्बरोनी घणी वस्ती होवा छतां ते ते देशोमा हजु सुधी तेओ प्रवेश करी शक्या नथी. ३ आगरा जील्लामा पल्लीवाल जैनोनी वस्ती घणी छे, तेओ मूल श्वेताम्बर जैनो हता. ( तेओमांना घणाखरा अत्यारे पण कहे छे के अमे श्वेताम्बर हता ) पण संवेगी मुनिराजोना विहारना अभावे केटलाक स्थानकवासी आम्नायने अने केटलाक दिगम्बर आम्नायने मानवा लागी गया छे. ए तरफनां न्हानां म्होटां गामोमां मुनिराजो विचरे तो घगो लाभ थाय तेम छे. ४ बुदेलखंड अने संयुक्तप्रान्तमां दिगम्बरमाइओनी वस्ती सारी छे, तेओ भद्रिक होइ संवेगी साधुओने गोचरीपाणी व्होरावे छे. तेथी आ प्रान्तोमा विहार करवामां वधारे मुश्केली पडती नथी. ५ बंगाळ अने मगधना लोकोमा मांसाहार करनारा वधारे छे. परन्तु तेओ भक्तिवाळा अने बुद्धिशाळी होवाथी तेमना ऊपर उपदेशनी असर सारी थाय छे. तेओ युक्तिमां निरुत्तर बने छे, के तत्काल मांसाहारनो त्याग करे छे. उपदेशकोनो प्रचार थाय, तो आ देशोमां हजारो मनुष्यो मांसाहार छोडे अने जैनधर्मना अनुरागी बने तेम छे. ६ मोटी मारवाड अने मेवाडमां तेरापंथीओनुं जोर वधारे छे. तेरापंथीना श्रावको दुराग्रही वधारे छे. संवेगी अने स्थानकवासी साधुओने गोचरी व्होराववामां पण
SR No.006292
Book TitleVihar Varnan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1926
Total Pages158
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy