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________________ आर्य स्थूलभद्र शकडाल काँप उठा। उसके ललाट वह उठकर सीधा अपने भवन की वाटिका में आकर बैठ गया। संध्या के समय पर पसीना टपक पड़ा। श्रीयक* आया। शकडाल को अशोक वृक्ष के नीचे चिंतामग्न देखा तो पूछाअग्नि और जल की पिताश्री ! क्या तरह सन्देह में अँधा हुआ बात है? आप इतने tttttri राजा, मेरे कुल का सर्वनाश A उदास ! चिंता में कर सकता है। डूबे हुए? UU. कुछ देर मौन रहने के बाद अफवाहों के बारे में चर्चा करते हुए शकडाल ने कहावररुचि ने हमारे विरुद्ध पिताश्री ! मैं इसका पता बड़ा भारी षड्यंत्र रचा है। लगानूंगा। आप चिन्ता न करें। महाराज भी मेरी स्वामिभक्ति पर शंका कर बैठे हैं। नहीं वत्स ! पानी || फिर श्रीयक के सिर पर हाथ रखकर कहासिर पर से निकल चुका पुत्र राजा की कोपाग्नि इस है। किसी भी समय कल्पक वंश वृक्ष को जलाये, संदेह से क्रुद्ध राजा इससे पहले ही एक बलिदान हमारे कुल का विनाश करना होगा। करवा सकता है। GAVAT CTELOPOS - -C श्रीयक महाराण धननन्द का विश्वस्त मुख्य अंगरक्षक था। 20
SR No.006284
Book TitleAarya Sthulbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Education Board
PublisherJain Education Board
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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