SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करनी का फल दोनों भाईयों ने डरते-डरते सारी बातें बताईं तपस्वी ने तो फिर क्या करें?/ तपस्या करो ! समझाया ऐसे दुःखी जीवन से / साधना करो ! तप भद्र ! शरीर को नष्ट कर देने से कष्टों का अन्त हम ऊब चुके हैं। की अग्नि से कर्म नहीं होगा। ये कष्ट अगले जन्म में फिर तुम्हारा पीछा जलते हैं। तभी तुम करेंगे, जैसे शिकारी शिकार का पीछा करता है। वैसे ही दुःखों से छुटकारा कर्म प्राणी का पीछा करते हैं पा सकोगे। मुनि के बताये अनुसार दोनों भाई साधु बन गये और जंगल में तप-ध्यान करने लगे। एक बार दोनों मुनि घूमते हुए हस्तिनापुर के बाहर एक बगीचे में आकर तप करने लगे। संभूत मुनि मास खमण के तप का पारणा लेने नगर में गये। राजपुरोहित नमुचि जो भाग गया था और हस्तिनापुर में आकर यहाँ के चक्रवर्ती राजा सनत्कुमार का मंत्री बन गया था उस नमुचि ने संभूत को मुनिवेश में देखकर पहचान लिया-"अरे ! यह तो वही चाण्डाल पुत्र है। कहीं राजा के पास मेरा भेद प्रकट कर दिया तो सारी पोल खुल जायेगी।" मंत्री ने अपने सैनिकों को आदेश दिया-"राजमार्ग पर यह जो साधु घूम रहा है। वह ढोंगी और पाखण्डी है, इसे पकड़कर नगर के बाहर ले जाओ, और मार-पीट कर भगा दो।" राज सेवकों ने तपस्वी संभूत मुनि को रस्सों से, बैंतों से पीटना शुरू किया। मुनि ने शान्तिपूवर्क कहा-भाई ! क्या बात है, मैंने तुम्हारा कोई अपराध नहीं किया। मुझे क्यों मार रहे हो? रामपुरुषों ने कहा-तुम ढोंगी हो, पाखण्डी हो, तपस्वी के वेश में चाण्डाल हो बार-बार रोकने पर भी जब राजपुरुषों ने मुनि को पीटना बन्द नहीं किया तो संभूत मुनि को क्रोध आ गया। उन्होंने कहा-दुष्टों ! मेरी शान्ति और क्षमा को भी तुम कायरता और पाखण्ड समझ रहे हो, ठहरो ! उन्होंने अपना मुँह खोला-मुख से आग की लपटें उगलती हुई तेजोलेश्या प्रकट हुई। क्षण भर में आकाश धुएँ से भर गया। राजसेवक डरकर भाग गये। परन्तु मुनि का कोप शान्त नहीं हुआ। उनके मुख से धुएँ के गुब्बारे निकलकर पूरे नगर पर छा गये। नगरवासी चीखने चिल्लाने लगे-हाय, क्या हुआ? दम घुट रहा है। यह धुआँ कहाँ से आ रहा है? (मैं) चित्त मुनि भी वहीं पर ध्यान कर रहा था। आकाश में उठती अग्नि ज्वालाएँ और धुएँ का गुब्बार देखता रहा। मैं शीघ्र ही संभूत मुनि के पास आया
SR No.006282
Book TitleKarni Ka Fal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Education Board
PublisherJain Education Board
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy