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________________ करनी का फल चित्त और संभूत दोनों भाई नगर के चौराहों पर लय ताल पूर्वक गाते-बजाते घूमने लगे। लोग उनकी सुरीली मीठी आवाज सुनकर मस्त हो जातेइनके सुर में तो अमृत छुपा है। मन होता है बस सुनते ही रहें, सुनते ही रहें आ..3...3.. cla एक बार नगर में बहुत बड़ा मेला लगा। देश-विदेश के संगीत नृत्य में निपुण अनेक संगीतज्ञ आये। दोनों चाण्डाल पुत्र भी उसी मण्डली में घुसकर गाने लगे। लोग उनका स्वर सुनते ही झूमने लगे। तभी कुछ पण्डित लोग हाथों में लट्ठ लेकर आ गयेअरे! इस सभा में आकर इन चाण्डाल पुत्रों ने तो हमारा धर्म भ्रष्ट कर दिया। मार-मार कर नगर से भगा दो। Nudai लोगों ने लाठियां, पत्थर, धूंसे, मुक्क मारकर दोनों को लहुलुहान कर दिया। दोनों भागते-भागते एक सुनसान जंगल में | दोनों पहाड़ी पर चढ़कर छलाँग लगाने को तैयार होते छप गये। चित्त बोला हैं। तभी एक तपस्वी दूर से उनको पुकारते हैंभाई ! ऐसा. अपमानित भद्र ! क्या कर रहे जीवन जीने से तो हो? क्यों इस पहाड़ी मरना अच्छा है। से कूदकर मरना चाहते हो?
SR No.006282
Book TitleKarni Ka Fal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Education Board
PublisherJain Education Board
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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