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________________ करनी को फल चक्रवर्ती ने प्रसन्न होकर तुरन्त अपने गले का हार, ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती बगीचे में मुनि के दर्शन करने के लिए अँगूठी आदि उतारकर माली को पुरस्कार दिया- आया। मुनि को देखते ही ब्रह्मदत्त के हृदय में भाई का तुमने मुझ पर बहुत बड़ा प्रेम उमड़ने लगा। वह मुनि के चरणों से लिपट गया। उपकार किया, अब चलो भाई ! मेरे भाई ! उन मुनि के दर्शन करें। कहाँ है मुनि ? चक्रवर्ती की यह हालत देखकर सभी लोग आश्चर्यचकित हो गये। महारानी ने पूछामहाराज! आपको आज यह तुम्हें नहीं मालूम हम पिछले क्या हो गया? मुनि के प्रति पाँच जन्मों के सगे भाई हैं। इतना प्रगाढ़ स्नेह ! ये आपके हमने पाँच जन्मों तक साथ-साथ/ भाई कैसे हुए। सुख-दुःख भोगे हैं। 6.0than ght P xMARDS cayan सभी लोग आश्चर्यचकित होकर पूछने लगेमहाराज ! यह क्या कहानी । है। हमें भी कुछ बताइये! मेरा हृदय भर रहा है, मैं नहीं बोल सकता, यह कथा तुम मुनिवर के मुख से ही सुनो।
SR No.006282
Book TitleKarni Ka Fal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Education Board
PublisherJain Education Board
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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