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करनी का फल कुछ देर बाद पूरे होश हवास में आने पर चक्रवर्ती गाँव-नगर गली-गली में लोग ये तीन पद बोलने ने अपने उद्घोषक को बुलाकर कहा
लगे, परन्तु आगे का चौथा पद कोई नहीं बना
सका। एक दिन एक माली दौडा-दौडा राज सभा जाओ ! पूरे राज्य में कविता के
में आया और बोलायह तीन पद सुनाकर लोगों से कहो, जो इसका चौथा पद
Mond महाराज ! श्लोक सुनायेगा मैं उसे १ लाख स्वर्ण
का चौथा चरण
सुनाओ! मुद्रायें दे दूंगा।
मिल गया। 2
सुजाओ!
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चक्रवर्ती ने आश्चर्यपूर्वक देखा और माली से पूछा
तुमने बनाई यह
कविता?
माली ने ब्रह्मदत्त को श्लोक का चौथा चरण सुनाया।
मेरे बगीचे में एक मुनि आये हैं। वे वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ खड़े थे। मैं बगीचे में काम करता-करता कविता के तीन पद
गुन-गुना रहा था। तब वे अचानक बोलेछठा जन्म हमारा # है यह। भाई-भाई
अलग हुए। 'वाह ! जरूर यही श्लोक
का चौथा चरण है।
नहीं महाराज! यह कविता मेरी
नहीं है।
#इमा णो छट्ठिया जाइ अन्नमन्मेण मा विणा